जुस्तजू भाग --- 23
यूं तक़दीर बदल दी है हमने, ए खुशी।
तुझे उनकी जिंदगी बाकदम निभाना होगा।।
कह दो गमों के सागर से।
ये खुशी वक्त से कमाई है।।
यूं तो आरुषि अपनी पहचान भुला देना चाहती थी पर अख्तर को कैसे गंवा देती ? आज फिर वही मुश्किल थी। वह अपने साए को भी उस परिवार से दूर ले जाना चाहती थी पर हर चीज अपने अनुसार मुमकिन नहीं होती। अभी वह इस परिवार की खुशी वापस लौटा देना चाहती थी। उसे कार में बिठाने रुखसाना ख़ुद आई थी और ड्राईवर को सख़्त ताकीद की कि वह उसे घर से पहले कहीं न उतरने दे।
"राधा, बच्चे को तुम्हारी जरूरत होगी। सीधे घर जाना। मैं और अम्मी भी आ ही रहे हैं।"जैसे भाग जाने के सारे रास्ते बंद कर दिए थे रुखसाना ने।
गाड़ी रवाना होते ही रुखसाना ने अनुपम को फ़ोन कर दिया। अनुपम के लिए रात बहुत भारी गुजरी थी।
"रुख, दूसरी गाड़ी बुलाओ हमें राधा की निगरानी करनी होगी। उससे अनुपम को मिलाना ही है हमें।"तभी पीछे से अम्मी चली आई।
"अम्मीजान हम लाए हैं गाड़ी, आप दोनों हमारे साथ चलें।"रुखसाना के पति तभी वहीं आ गए।
"आप यहां, उधर सैयद साहब अकेले अख़्तर को कैसे संभालेंगे ?"
"अब्बू ने ही भेजा है। इधर निशांत साहब ने डॉक्टर रॉय के हॉस्पिटल में अख़्तर की शिफ्टिंग तय करवा ली है। अब कोई फिक्र की बात नहीं है।"
"चलिए जल्दी और हां हममें से कोई बिना जरूरत सामने नहीं आएगा।"
"जी अम्मी, हम अनुपम भाईजान को फ़ोन करके सब बता दें ?"
"नहीं रुख, बेवजह रिश्तों में दख़ल बात बिगाड भी सकता है और राधा अपने सबसे नाज़ुक दौर में है। अभी 3 महीने ही हुए हैं उसे मां बने और अख़्तर का हादसा !! हिल गई है वो, पता नहीं अपने बच्चे को वहां न पाकर कैसे रिएक्ट करेगी !!!" अम्मी की चिंता बेवजह नहीं थी।
*******
उधर आरूषि सारे रास्ते कितने ही प्लान सोच बैठी। वह अपने बच्चे को किसी तरह हासिल कर वहां से भी भाग जाना चाहती थी ताकि उसके सरमायेदार परिवार पर उसके दुर्भाग्य का साया दूर हो जाए।
"दीदी, घर पहुंच गए हैं।" ड्राईवर की आवाज़ से उसे वास्तविकता का भान हुआ। वह अपने आपको खींचती सी घर के दरवाजे की ओर बढ़ चली। वह कहां जानती थी कि दरवाजे के पीछे उसका वक्त ही बदल जाने वाला है !!
उधर सुहैल (रुखसाना के पति) ने अपनी गाड़ी कुछ दूर रोक दी और सब आरूषि के अंदर जाने का इंतज़ार करने लगे।
दरवाजा जैसे ही खोलने के लिए आरूषि ने हाथ बढ़ाया। वह अपने आप ही खुल गया।
"............"
आरूषि की आंखें हैरत से फट पड़ी। कुछ देर में ही वह अनुपम की बाहों में बेहोश झूल गई। अनुपम अपने प्यार को पाकर जहां कुछ पल खुश हुआ वहीं उसे इस तरह पाकर घबरा सा उठा। पर डॉक्टर ने उसे आरूषि के रिएक्शन के बारे में पहले ही चेतावनी दे दी थी तो वह संभल गया। उसने आरूषि को गोद में उठाया और सोफे पर लिटा दिया। उसके आंसू नहीं रुक रहे थे। बैठकर उसने आरूषि को अपनी बाहों में भर लिया। वह भी सुन्न सा था। शायद उसकी निकटता का असर था या उसके प्यार की दुआओं का, कुछ पल बीते सदियों से और आरूषि होश में आने लगी। खतरा टल चुका था।
"कुछ बताओगी ?"
"बस दूर जानें दें मुझे, वरना फिर से...."
"क्या, क्या फिर से"उसने आरूषि की बात काट दी।
"म.. म... मैं आपको खोना नहीं चाहती। किसी को भी खोना नहीं चाहती। अपनी बदशकुनी छाया से दूर रखना चाहती हूं सबको।"
"और ये कैसे पता चला आपको ?"
"जब भी आपके पास आई हूं आपकी जान जा सकती थी। पहले शादी के बाद फिर साथ रहते...."
"फिर बचाया किसके हाथों ने ?"
".........."
"हो सकता है कि पहली बार भी आपकी किस्मत ने बचाया हो और दूसरी बार तो आप ही थी न बचाने वाली ??"
"और मम्मी ...."
"उनको अटैक अगर मुंबई में आता तो ? फिर कभी उनकी जान को खतरा था ही नहीं।"
"मेरे मम्मी पापा..."
आरूषि अनुपम से बहस में उलझ चुकी थी। उसका डर, उसकी भयानक यादें, उसका अतीत उसकी मानसिक उलझने सब जैसे निकल पड़ने को आतुर थी।
"मम्मी पापा आपको जबरदस्ती ले गए थे अपने साथ। आप उन्हें नहीं ले गई थी !"
"पर अख़्तर ....."
"उसे बचाने के लिए ही अल्लाह ने आपकों भेजा था हमारे पास। अगर उस दिन मैं साथ आई होती तो आज वो....."रुखसाना अंदर आते बोल पड़ी। उसका गला भर आया था।
"हां बेटी, आज तुम हमारे पास न होती तो......"अम्मी भी रो पड़ी।
"न अम्मी, दी नहीं !! मैं यहां न होती तो उसका एक्सीडेंट....."
"होता जरूर, लापरवाह वह था इल्ज़ाम आपने अपने सर ले लिया। और जानती हैं आप, आज अब्बा का बिजनेस, अख़्तर को जिम्मेदार बनाना, सब आपकी वजह से है। इस घर में कोई किलकारी 18 वर्ष बाद गूंजी वो भी आपकी वज़ह से बाजी" सुहैल बोले।
"आप बदशकुनी होती तो शिवेंद्र की जान बचती ? उन लोगों की जान बचती जिनके ऑपरेशन आपने किए ?"
आरूषि लाजवाब थी। अब उसे अपने बच्चे की याद आई।
"अम्मी, मेरा बच्चा ??"
"आप अपशकुनी हैं न, तो उसे बचाने के लिए मुम्बई भेज दिया मैने।"
"क्या.....? आरूषि नाम की शेरनी भड़की पर सबका चेहरा देखकर वो फिर से संभल गई।
"हां बेटी आप भाग जाना चाहती थी न ?? तो उसे लिए कहां कहां घूमती ? हम सबने उसे आपकी मां के साथ मुंबई भेज दिया हमने। अब जाइए, ले आइए उनसे।"
आरूषि की जबान पर ताला लग गया था जैसे। मम्मी से मिलना मानों भूखे शेर के सामने पड़ना !!
"जाइए बाजी, तैयार हो जाइए आपकी फ्लाइट है कुछ देर में।"सुहैल बोले, आपको छोड़ देता हूं वहां।"
आरूषि चुप थी पर अनुपम को बहुत गुस्से से घूर ले रही थी।
"रुख, जल्दी से विदाई की तैयारी करो। राधा, लड़ना नहीं।"अम्मी ने ताकीद की।
फ्लाइट में बैठने तक आरूषि चुप रही फिर अनुपम पर बरस पड़ी।
"आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरे बच्चे को भेजने की ?"
"वैसे ही जैसे पिछली बार आपने भेज दिया था।"
"मैने मम्मी को दिया था।"
"मैंने भी उन्हें ही दिया है।"
"और मैं ??? मेरी इजाज़त ली थी आपने ?"
" अब यह बात कौन कह रहा है ?"
"मेरी मर्जी, मैं चाहे दूं या न दूं।"
"राजकुमारी जी, आप भूल रही हैं। आपकी मम्मी में भी वही ख़ून है जो आपकी रगों में बहता है। अपनी एनर्जी बचा रखिए अभी कुछ देर में उनके सामने ही जाना है आपको।"
"वो हम दोनों के बीच की बात है। आपने दख़ल क्यों दिया ?"
"क्योंकि अब राजकुमारी जी की जरूरत है आपके गुलाम को।"
अनुपम की बातें जैसे उसमें जीवन संचार कर रही थी। वह अपनी मुस्कुराहट मुश्किल से दबा पा रही थी।
"राजकुमारी चाहिए तो कुछ अलग सा कीजिए।"
"अब 2-2 बार शादी कर ली, और क्या बाकी रह गया।"
"हां तो आपने क्या मेहनत की ? बस दूसरों की बदौलत मिल गई। अब पाना है तो खुद मेहनत करनी पड़ेंगी।"
"हुक्म कीजिए"
"प्रपोज कीजिए अभी"
"अभी ? और यहां फ्लाइट में ?"
"बस इतने दम पर ही राजकुमारी पाना चाहते हैं !!"
"एक शर्त पर अब कभी राजकुमारी मुझे छोड़ नहीं पाएंगी।"
"देखेंगे, पहले आपकी बारी है।"
अनुपम उसे बचपन से जानता था। उसने ऐसा ही कुछ सोच रखा था तो फ्लाइट स्टॉफ से पहले ही अनुरोध कर रखा था। उसने हल्के से हाथ पकड़कर आरूषि को सीट से उठाया और फ्लाइट अटेंडेंट को इशारा किया। कुछ ही पल में एक सुर्ख लाल गुलाब उसके हाथ में दे दिया उसने। अनुपम आरूषि के सामने घुटनों पर झुक गया और सिर झुकाकर बोला।
"क्या आप हमेशा के लिए मेरे जीवन में खुशियों के रंग बिखेरने के लिए आने को तैयार हैं ?"
आरूषि इस सब के लिए तैयार न थी। वह सिर्फ़ चुहल कर रही थी। अचानक ये सब देखकर वह स्टंड रह गई। फ्लाइट की सारी सवारियां ताली बजाकर दोनों के लिए विश कर रही थी। कुछ नौजवान विवाहिताएं अपने साथी की ओर प्रश्न भरी निगाहों से देख रही थी। स्टॉफ और बाकी को आरूषि के जवाब का इन्तजार था।
"हां, हमेशा हमेशा के लिए...."
तालियां और सीटियां गूंज पड़ी। स्टॉफ ने फूल बरसा दिए उन पर। गाना बज उठा, "तुझे सज़दा करां...."
कुछ ही देर में फ्लाइट मुंबई पहुंच गई। आरूषि सातवें आसमान पर थी। जो उसे पहले मिल नहीं पाया, इस तरह मिलेगा, उसने कल्पना भी नहीं की थी। उसका चुलबुलापन लौट आया था। अभी वह कोई बड़ी सर्जन नहीं थी। थी तो बस एक लड़की जिसके सपने इस तरह पूरे हो रहे थे। अनुपम भी अपने पद को भूलकर अपने आप को युवा प्रेमी सा महसूस कर रहा था। चैक आउट कर उसने अपनी कार मंगवा ली थी घर से और ड्राईवर को दूसरे साधन से आने के लिए कह दिया। वह हर पल उसके साथ रहना और उसे महसूस करना चाहता था। पर उसे डॉक्टर की चेतावनी भी याद थी कि आरुषि अपने भूत में बीते समय को याद न करने पाए।
"आइए राजकुमारी, आपको आपके घर ले जाने के लिए रथ हाज़िर है।"
"राजकुमारी का विचार है कि उसे जमीन पर पैर न रखने दिए जाएं।"
"तो आइए"अनुपम उसे उठाने के लिए आगे बढ़ा। पर आरुषि भागकर पैसेंजर सीट पर जा बैठी और अनुपम को मुंह चिढ़ाने लगी।
अनुपम मुस्कुराते हुए ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। घर पहुंचने तक आरुषि फिर से मम्मी का सामना करने से घबराने लगी। अनुपम ने उसका चेहरा पढ़ लिया और वो कुछ और सोच पाती उससे पहले उसने गेट खोलकर आरुषि को गोद में उठा लिया और घर के अंदर ले जाकर खड़ा कर दिया। उसी समय मम्मी जी अपने कमरे से बाहर आ गई। अनुपम ने आरुषि का हाथ कसकर पकड़ लिया। आरुषि ने उसकी ओर देखा तो अनुपम ने उसे धैर्य बंधाते नजरों से देखा।
"अपना हॉस्पिटल कब देखने चल रही हो ?"
आरुषि चौंक उठी। कहां उसे डांट या ऐसा ही कुछ और सोचा था पर मम्मी !!!
"मम्मी, आप सच में ग्रेट हो।" वह उनके गले से लिपट गई।
"जानती हूं। आखिर मेरी बच्ची भी तो ग्रेट है।"उन्होंने उसका माथा चूमते हुए कहा।"जाओ, अपने बच्चों से मिल लो। वे ऊपर के कमरे में सौम्या के पास हैं।"
वह तुरंत भागते हुए ऊपर चली गई।
"ऐसे नहीं दी, आपको बच्चे यूं ही नहीं मिलेंगे।"
"सौम्या जो बोलोगी वो कर दूंगी। पर अभी इन्हें मुझे ले लेने दो, प्लीज़।"
"तो वादा कीजिए हमें फिर कभी छोड़कर नहीं जाएंगी।"सौम्या रोते हुए उसके गले जा लगी।
आरुषि की आंखें भी बरस उठी। उसे आज पता लगा कि वह उन सबके लिए कितनी महत्वपूर्ण थी !! उसने पहले छोटू को उठा लिया। ममता के जोश ने उसे फीडिंग कराने पर मजबूर कर दिया। आज पहली बार अपने बच्चे को दिल से फीड करा रही थी वह !!
"मम्मी आप आ गई !!!" आरव को पता लगा तो वह दौड़ता हुआ अपनी मां से मिलने चला आया।
आरुषि ने उसे भी अपने गले लगा लिया। उसके दिल में ममता का ज्वार उठ रहा था। बाहर खड़े अनुपम की आंखें यह दृश्य देखकर बरस रही थी। उसकी ही नहीं बल्कि सौम्या और अनुपम के पीछे खड़ी मम्मी जी और मां का हाल भी यही था।
*******
आरुषि आज बेहद खुश थी। उसके सभी रिश्ते पूरे थे। अनुपम की भाभी ने उदयपुर फ़ोन कर सबको बुला लिया था। सबका प्यार उसे मिल रहा था। बस प्रतापगढ़ में किसी को ख़बर नहीं की गई थी। सौम्या और शिवेंद्र उसका बहुत ध्यान रख रहे थे। आरुषि की नजरों ने दोनों का रिश्ता समझ लिया था। अब वह उसे अंजाम तक पहुंचाना चाहती थी।
"सौम्या, अभी हॉस्पिटल देखने चलोगी ?"
"दी, अभी !!"
"हां, पर तुम्हारे भाई के बिना जाना सही नहीं लग रहा। इधर दोनों बच्चों को भी मैं अपने से दूर नहीं करना चाहती।"
"दी, शिव को बुला लेती हूं। मैं भी आपके साथ चलूंगी।"
"ठीक है"
सौम्या ने शिवेंद्र को फ़ोन कर दिया। शिवेंद्र आ गया तो वे सब कार में बैठने लगे। सौम्या पीछे की ओर आई तो आरुषि ने बच्चों के लिए जगह न होंने का बहाना कर उसे आगे बिठा दिया। शिवेंद्र की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो रही थी। कार ठाणे के लिए चल पडी। मुंबई से हॉस्पिटल डेढ़ घंटे दूरी पर था। आरुषि ने बैक व्यू मिरर से परेशानी होने का बहाना कर उसे इस तरह एडजस्ट करवा लिया कि वो उन दोनों पर नज़र रख सके। शिवेंद्र ने आरुषि को पहले बच्चों में मगन पाया तो चुपचाप सौम्या का हाथ पकड़कर गियर स्टिक पर अपने हाथ के नीचे दबा लिया सौम्या चौंक कर पहले शिवेंद्र की ओर देखी, उसकी आंखों में अपने लिए शैतानी देखकर उसने पीछे की ओर देखा फिर अपने हाथ को वैसे ही रहने दिया।
"थोड़ा सा ध्यान इधर भी दे लीजिए। कई दिनों से बात भी करने को तरस गया हूं।"
"श श श। दी हैं पीछे !!"
"वो सो गई हैं।"
"ओ हो !! तो इतने दिन से ताला क्यों लगाए बैठे थे ? आप भी तो बात कर सकते थे न !! पता भी है मेरा क्या हाल हुआ होगा ?"
"तो कुछ करो न !"
"कैसे ? हाथ तो पकड़ रखा है आपने।"
"पर चेहरा तो.....!!"
"चुप, शैतान कहीं के !! दी ने सुन लिया तो !! आप तो बिल्कुल बेशर्म हो गए हैं। कहां तो मुंह फुलाए घूमते थे, और आज..." सौम्या ने शिव की बात काटकर कहा। उसका चेहरा शर्म से लाल हो चुका था।
"तो आज कहीं बाहर चल सकते हैं।"
"दी को कैसे छोड़कर..."
"जीजी सा अब पूरी तरह ठीक है। बाकी सब मैं देख लूंगा। आप तैयार रहिएगा।"
"जीजी तैयार है शिव !!" अचानक से पीछे से आवाज़ सुनकर दोनों चौंक उठे। शिवेंद्र ने गाड़ी के ब्रेक लगा दिए थे।
"तो ननद बाईसा। अब धमकियां दीजिए !! अब अपनी भाभी बना लूंगी तो कैसे धमकाएंगी ??"
"दी....." सौम्या बेहद शर्मा गई थी। शिवेंद्र भी नजरें झुका चुका था।
"जी, बताइए क्या करूं आपके लिए।"
"जीजी सा...."
"बस, बस गाड़ी वापस घर की ओर घुमा लीजिए। मुझे अब अपनी भाभी लाने की बहुत जल्दी है।"आरुषि ने अपनी नजरों में शैतानी भरकर कहा।
दोनों बेहद शर्मिंदा थे। सौम्या आगे की सीट पर बैठ ही नहीं रही थी।
"चलिए अपने भतीजों को संभालकर आगे की प्रेक्टिस कर लीजिए।"आरुषि आगे बैठ गई। शिवेंद्र ने चुपचाप गाड़ी वापस मोड़ ली।
आरुषि ने सौम्या के मम्मी पापा को गाड़ी से ही फ़ोन कर बुला लिया। घर पहुंचते ही सौम्या शर्माकर अंदर भाग गई थी।
"मामोसा। बहू लाने की तैयारी में लग जाइए। मुझे मेरी भाभी चाहिए, जल्दी।"
"अरे बेटा पर लड़की...."
"ढूंढ ली अब कल सगाई करनी है आपको।"
"अरे सुन तो..."
"जानती हूं जिसे आप सबने तय किया है उसे ही लाने की तैयारी है मेरी।"
"पर बेटा। आपकी तबियत......"
"जल्दी ठीक करनी है न तो कल हो सगाई करनी है।"
"अब आप कह रहे हैं तो हम सब भी तैयार हैं। बस आप नहीं थी तो हमने टाल रखा था।"
आरुषि मिठाई लेकर सौम्या के कमरे में फिर से उसे छेड़ने चली गई। पर कुछ कह पाती उससे पहले ही सौम्या उससे लिपट गई।
"सौम्या... परेशान किया मैंने ??"
"..........."
"बस पहले ननद बनाया था। अब सचमुच में भाभी बनाकर हमेशा के लिए अपने से जोड़ लेना है।" आरुषि ने उसका सर सहला दिया था।
बात दिल की:-
लगता है कि और एपिसोड लिखना पड़ेंगे। अब तो यह कुछ ज्यादा ही हो गया न ??? आपकी क्या राय है ?☺️
Arshi khan
27-Jan-2022 12:16 AM
कहानी तो काफी रुचिकर है,
Reply
Arman Ansari
16-Jan-2022 10:05 AM
कहानी इतनी आगे बढ़ गयी और मुझे पता भी नही चला थोड़ा बिजी क्या हुआ मैं पर कहानी देख कर ही खुश हो गया मेरी पंसन्दीदा कहानी के इतने पार्ट आ गए अच्छा लगा
Reply
Ajay
16-Jan-2022 10:12 AM
आपको ढूंढता रहा भाई, बिना आपकी टिप्पणी के अधूरा सा लगा। कोशिश रहेगी कि आज इसका अगला भाग डाल सकूं।
Reply
Arman Ansari
16-Jan-2022 04:41 PM
Thoda sa busy tha to nhi dekh paya mafi , pr ab se time jarur duga apki kahani padkar mujhe anand ata h kho sa jata hu padte padte , pata hi nhi chalta ki kb khatam ho gyi , kabhi kabhi to intazar bhi nhi hota h age age kya hua , yehi sochta rhta hu jb tk part nhi a jata , bina pade itne din kese rha hu ye me hi smjh skta hu !
Reply
Aliya khan
11-Jan-2022 10:36 PM
नही भाई इस के ओर पार्ट लेन होंगे बहुत अच्छा चल रहा है
Reply
Ajay
11-Jan-2022 11:03 PM
ज़रूर 🙏🏻
Reply